सुनो तो जरा
पेड़ हवाओं से क्या कहते।
बिरछ-ज्ञान है बड़ा पुराना
ऋषि-मुनियों ने इसको साधा
मंत्र रचे थे इसी ज्ञान से
जिनने मेटी हर भवबाधा
पाप-ताप
सबके भी, साधो
बिरछ-गाछ हँसकर हैं सहते।
पेड़ों ने छाया दी सबको
फूल-फलों से हमें नवाजा
फर्क नहीं करते वे कोई
होवे रंक या कि हो राजा
रची आग जो
सभ्य समय ने
उसमें भी ये चुप-चुप दहते।
समझो इनकी बोली-बानी
युग के संकट को पहचानो
अब तक इनकी जड़ में पानी
तब तक साँसें - यह भी जानो
साँस-साँस
बर्फीली होती
तब भी बिरवे जिंदा रहते।